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Kanpur Dehat News: जुनैदपुर गांव में जलती है नारियल की होली, वर्षों पुरानी परंपरा रखी जा रही बरकरार

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Kanpur Dehat News: उत्तर भारत में होली मनाने की परंपरा अनोखी और विविधतापूर्ण है, लेकिन कानपुर देहात के जुनैदपुर गांव में मनाई जाने वाली होली अपनी खासियत के कारण चर्चा में रहती है। यहां लकड़ियों या घासफूस की जगह नारियल की होली जलाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इस विशेष परंपरा से वातावरण शुद्ध होता है और लोग अपनी परेशानियों से मुक्ति पाते हैं।

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नारियल की होली की अनूठी परंपरा

जुनैदपुर गांव में पिछले दो दशकों से होली जलाने के लिए नारियल का उपयोग किया जाता है। गांव के बाहर स्थित बालाजी मंदिर के प्रांगण में यह होली सजाई जाती है, जहां भक्तगण श्रद्धा के साथ नारियल चढ़ाते हैं और फिर उसे होली में अर्पित कर देते हैं। इस परंपरा के पीछे एक मान्यता जुड़ी है कि व्यक्ति जब अपने सिर के चारों ओर नारियल घुमाकर होलिका में अर्पित करता है, तो उसके सभी कष्ट और दुख भी उसी के साथ जल जाते हैं।

राजस्थान के मेंहदीपुर बालाजी से प्रेरित परंपरा

बालाजी मंदिर के संस्थापक ओम प्रकाश शास्त्री के अनुसार, इस अनूठी परंपरा की शुरुआत लगभग 20 साल पहले हुई थी। यह परंपरा राजस्थान के मेंहदीपुर बालाजी मंदिर से प्रेरित है, जहां नारियल की होली जलाने की परंपरा पहले से प्रचलित थी। धीरे-धीरे यह प्रथा जुनैदपुर गांव में भी स्थापित हो गई और अब हर साल होली पर भक्त यहां नारियल चढ़ाने आते हैं। अहमदाबाद, कानपुर, झांसी, फतेहपुर और हरदोई सहित अन्य शहरों से लोग विशेष रूप से इस होली में भाग लेने आते हैं।

होली के लिए नारियल कहां से आते हैं?

होली में जलाए जाने वाले हजारों नारियल मंदिर में पूरे साल चढ़ाए जाते हैं। मंदिर प्रबंधन उन्हें सुरक्षित रखता है और होली के अवसर पर भक्तगण इन्हें विशेष पूजा के बाद होली में अर्पित करते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति नारियल अर्पित करता है, उसके जीवन की सारी परेशानियां और कष्ट दूर हो जाते हैं। हर वर्ष लगभग एक लाख नारियल यहां एकत्र किए जाते हैं और श्रद्धालु इन्हें होलिका में समर्पित कर देते हैं।

वैज्ञानिक पहलू: वातावरण होता है शुद्ध

स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों के अनुसार, नारियल की होली जलाने से वातावरण शुद्ध होता है। नारियल के जलने से उत्पन्न धुआं हवा में मौजूद हानिकारक तत्वों को खत्म करने में मदद करता है, जिससे मानव के साथ-साथ पशु-पक्षियों का स्वास्थ्य भी बेहतर बना रहता है। यह परंपरा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि पर्यावरण को शुद्ध रखने में भी सहायक सिद्ध होती है।

Shivam Verma
Author: Shivam Verma

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