Varanasi News: काशी, जिसे देवों की नगरी कहा जाता है, जहां हर गली-मोहल्ले में भक्ति की धारा बहती है और जहां पर गौ माता को विशेष श्रद्धा के साथ पूजा जाता है – वहीं आज उन्हीं गौ माता की हालत अत्यंत चिंताजनक हो गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा गौ संरक्षण को लेकर दिए गए सख्त निर्देशों के बावजूद ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है।
मुख्यमंत्री के आदेशों की अनदेखी
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं गायों और अन्य जीवों के संरक्षण को लेकर संवेदनशील माने जाते हैं। वे समय-समय पर अपने अधीनस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों को निर्देश देते रहते हैं कि गौ सेवा में किसी भी तरह की लापरवाही न हो। उनका स्पष्ट मानना है कि सभी जीव-जंतु जीने के अधिकारी हैं, और उनमें से भी गौ माता को विशेष रूप से सम्मान और सेवा मिलनी चाहिए। लेकिन वाराणसी में उच्च अधिकारी इन निर्देशों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।
गोशालाओं की हालत: एक दुखद तस्वीर
वाराणसी के सहसापुर, खजूही बाबतपुर और छितौनी कोर्ट जैसे इलाकों में जब संवाददाताओं ने कई गोशालाओं का दौरा किया, तो वहां की स्थिति बेहद चिंताजनक पाई गई। भीषण गर्मी के बावजूद पशु खुले धूप में बांध कर रखे गए थे। जिन गोशालाओं में टीन शेड थे, वहां न तो पंखे काम कर रहे थे और न ही बिजली की कोई सुविधा थी।
पशुओं को खाने के लिए सिर्फ सूखा भूसा दिया जा रहा था। हरे चारे की कहीं कोई व्यवस्था नहीं थी। कई स्थानों पर पशु पराली खाकर अपनी भूख मिटाते हुए देखे गए। गर्मी में बेहाल जानवरों के पास न तो छांव थी, न ही पानी की समुचित व्यवस्था।
ज़्यादा पशु, कम सुविधा
स्थानीय कर्मचारियों ने दबी ज़ुबान में यह स्वीकार किया कि कई गोशालाओं में क्षमता से अधिक पशुओं को रखा गया है। नतीजतन उनकी देखभाल सही ढंग से नहीं हो पा रही है। एक पशु के लिए ₹55 प्रतिदिन के हिसाब से धन आवंटित होता है, लेकिन जब संख्या नियंत्रण से बाहर हो जाती है, तो भोजन और सुविधा की कमी होना लाजमी है।
अधिकारी बनाम हकीकत
स्थानीय प्रशासन यह दावा करता है कि गोवंशीय पशुओं की सही देखभाल की जा रही है, लेकिन ज़मीनी हकीकत इन दावों को झुठलाती है। तपती दोपहरी में जब संवाददाता ने निरीक्षण किया, तो अधिकांश गोशालाओं में पशु प्यासे, भूखे और परेशान नजर आए।
गोशालाओं की बदहाल व्यवस्था और अधिकारियों की उदासीनता से यह स्पष्ट हो जाता है कि धार्मिक रूप से पूजनीय गौ माता की स्थिति केवल भाषणों और बयानों तक सीमित रह गई है। ज़मीनी स्तर पर न तो चारे की व्यवस्था है, न ही गर्मी से राहत देने वाले इंतज़ाम।

Author: Shivam Verma
Description