Kanpur News: कानपुर विकास प्राधिकरण (केडीए) के प्रवर्तन ज़ोन-4 में अवैध निर्माण, भ्रष्टाचार और मिलीभगत का मामला गंभीर रूप से उभरकर सामने आया है। श्याम नगर, किदवई नगर, सुजानगंज और आसपास के घनी आबादी वाले क्षेत्रों में लगातार मिल रही शिकायतों की पड़ताल में ऐसे तथ्य सामने आए हैं, जो केडीए के अंदर सक्रिय “प्रोटेक्शन रैकेट” की पुष्टि करते हैं। इन मामलों में प्रवर्तन ज़ोन-4 के अवर अभियंता अमरनाथ पर भी अवैध निर्माणों को संरक्षण देने के आरोप लगाए जा रहे हैं।
बिल्डरों को खुली छूट, आम नागरिकों को दफ्तरों के चक्कर
स्थानीय निवासियों और दस्तावेज़ों के अनुसार, कुछ चुनिंदा बिल्डरों—जिनके नाम कानूनी प्रतिबंधों के चलते प्रकाशित नहीं किए जा सकते—को बिना नक्शा पास कराए बहुमंजिला भवन खड़े करने तक की अनुमति मौन-स्वीकृति के साथ मिलती रही है। वहीं, आम नागरिकों को मामूली दस्तावेज़ों के लिए भी प्राधिकरण के चक्कर काटने पड़ते हैं।
जाँच में कई ऐसे उदाहरण मिले, जहाँ अवैध निर्माणों पर औपचारिक रूप से “सील” की कार्रवाई की गई, लेकिन कुछ ही दिनों बाद निर्माण दोबारा शुरू हो गया। यह स्थिति तभी संभव है जब जिम्मेदार अधिकारी और फील्ड कर्मचारी मौन-सहमति या प्रत्यक्ष संरक्षण दे रहे हों।
निवासियों के अनुसार, पिछले कई वर्षों से “दो–तीन प्रमुख निर्माण गुट” क्षेत्र में अवैध रूप से दबदबा बनाए हुए हैं, जिन्हें न तो मानकों का पालन करने की ज़रूरत पड़ती है और न ही किसी स्वीकृति की।
सबसे चिंताजनक जानकारी यह सामने आई कि कई आवासीय भवनों के बेसमेंट को अवैध रूप से अस्पताल, पैथोलॉजी लैब और क्लीनिक के रूप में उपयोग किया जा रहा है। इनमें न फायर सेफ्टी की व्यवस्था है और न ही वैध लाइसेंस। इन खतरनाक ढाँचों के विरुद्ध कार्रवाई की फाइलें कई बार केडीए कार्यालय में पहुँचने के बाद भी “ऊपरी दबाव” और संरक्षण के कारण ठंडे बस्ते में डाल दी जाती हैं।
फर्जी निरीक्षण रिपोर्ट और नोटिस का खेल
दस्तावेजों की पड़ताल में यह भी सामने आया कि फील्ड कर्मचारियों द्वारा कई अवैध निर्माणों को “नियमित” दर्शाने के लिए गलत निरीक्षण रिपोर्ट तैयार की गईं। कई मामलों में नोटिस जारी किए गए, जवाब नहीं आया, और कार्रवाई किए बिना ही फाइल बंद कर दी गई। यह संकेत है कि नोटिस जारी करने वाली टीम और निर्माणकर्ता के बीच पहले ही समझौता तय हो चुका था।
शिकायतकर्ताओं पर दबाव
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि शिकायत करने पर अगले ही दिन निर्माणकर्ता को यह बता दिया जाता है कि किसने शिकायत की है, जिसके बाद शिकायतकर्ता पर दबाव बढ़ा दिया जाता है। कई बार डीएम, मंडलायुक्त और शासन को भेजी गई शिकायतों पर औपचारिक टिप्पणियाँ तो मिलती हैं, लेकिन जमीनी कार्रवाई लगभग न के बराबर होती है।
बड़ी जांच क्यों ज़रूरी?
- अवैध इमारतें स्थानीय निवासियों की जान जोखिम में डाल रही हैं
- फर्जी स्वीकृतियाँ शहर की मूल प्लानिंग को बिगाड़ रही हैं
- भ्रष्टाचार संस्थागत रूप ले चुका है
- ईमानदार आवेदकों का शोषण बढ़ रहा है
- संरक्षण देने वाले अधिकारियों, फील्ड कर्मचारियों और बिल्डरों के बीच वित्तीय लेन-देन की जांच जरूरी है
- सभी अवैध इमारतों की सूची सार्वजनिक की जानी चाहिए
- जिम्मेदार अधिकारियों का तबादला और निलंबन आवश्यक
रिपोर्ट: आयुष मिश्रा, कानपुर
Author: Shivam Verma
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