Translate Your Language :

Breaking News
Big Attack by JDU in IRCTC Scam Case : तेजस्वी को दी ‘सरेंडर’ की सलाह, लालू परिवार की खोली ‘जमीन’ की परतें” Ayodhya Diwali 2025 : दीपों की आभा में झलकेगा विकास का उजियारा, योगी सरकार की योजनाओं से निखरेगी रामनगरी Barabanki News : देवा मेला बाराबंकी में हॉकी प्रतियोगिता का रोमांच चरम पर, दर्शकों ने देखा खिलाड़ियों का दमखम Lucknow News : भाजपा सरकार में हर वर्ग के महापुरुषों को मिल रहा सम्मान, लखनऊ में कीरत बारी की मूर्ति स्थापना की तैयारी Barabanki News : भाकियू की मासिक बैठक में विश्वास बहाली व रक्तदान के संकल्प के साथ उठीं किसानों की समस्याएं Panna News : लोकायुक्त सागर की बड़ी कार्रवाई, सीएमएचओ कार्यालय में लिपिक रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार
Big Attack by JDU in IRCTC Scam Case : तेजस्वी को दी ‘सरेंडर’ की सलाह, लालू परिवार की खोली ‘जमीन’ की परतें” Ayodhya Diwali 2025 : दीपों की आभा में झलकेगा विकास का उजियारा, योगी सरकार की योजनाओं से निखरेगी रामनगरी Barabanki News : देवा मेला बाराबंकी में हॉकी प्रतियोगिता का रोमांच चरम पर, दर्शकों ने देखा खिलाड़ियों का दमखम Lucknow News : भाजपा सरकार में हर वर्ग के महापुरुषों को मिल रहा सम्मान, लखनऊ में कीरत बारी की मूर्ति स्थापना की तैयारी Barabanki News : भाकियू की मासिक बैठक में विश्वास बहाली व रक्तदान के संकल्प के साथ उठीं किसानों की समस्याएं Panna News : लोकायुक्त सागर की बड़ी कार्रवाई, सीएमएचओ कार्यालय में लिपिक रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार
Home » ट्रेंडिंग » Ahilyabai Holkar Jayanti: एक ऐसी रानी, जिसने बेटे को दी मौत की सजा और महिलाओं को दिलाया संपत्ति का अधिकार

Ahilyabai Holkar Jayanti: एक ऐसी रानी, जिसने बेटे को दी मौत की सजा और महिलाओं को दिलाया संपत्ति का अधिकार

Facebook
X
WhatsApp

Ahilyabai Holkar Jayanti: देश की महान महिला शासकों में शुमार अहिल्याबाई होलकर की आज 298वीं जयंती है। उनकी पहचान एक ऐसी शासिका के रूप में रही, जिसने न्याय के लिए अपने ही पुत्र को मौत की सजा दी और महिलाओं को संपत्ति का अधिकार दिलाकर सामाजिक क्रांति की मिसाल पेश की।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के जामखेड तहसील के छोटे से गांव चांडी में हुआ था। आज इस जिले का नाम बदलकर ‘अहिल्यानगर’ कर दिया गया है। उनके पिता मनकोजी राव शिंदे मराठा सेना में सैनिक थे। बाद में वे एक नायक के पद तक पहुंचे। माता सुशीला बाई एक धार्मिक और साधारण किसान परिवार से थीं। शिवभक्त मां की संगत और मराठा परिवार की परंपरा के कारण अहिल्याबाई को बचपन से ही सैन्य प्रशिक्षण और धार्मिक संस्कार दोनों मिले।

बाल विवाह से राजवधू बनने तक

महज आठ साल की उम्र में अहिल्याबाई का विवाह इंदौर के शासक मल्हारराव होलकर के पुत्र खांडेराव होलकर से हुआ। यह बाल विवाह था और चार वर्षों तक अहिल्याबाई मायके में ही रहीं। 1737 में गौना होने के बाद वे इंदौर आईं और राजपरिवार का हिस्सा बनीं। लेकिन उनका निजी जीवन हमेशा चुनौतियों से भरा रहा। 29 वर्ष की उम्र में पति की मृत्यु हुई। फिर ससुर मल्हारराव, बेटा मालेराव, पोता और दामाद – सभी को उन्होंने खो दिया।

जब बेटे को दी गई मौत की सजा

मल्हारराव की मृत्यु के बाद अहिल्याबाई ने राज्य की बागडोर संभाली। लेकिन उनके बेटे मालेराव का व्यवहार प्रजा के प्रति अमानवीय था। धार्मिक लोगों के प्रति अपमानजनक बर्ताव और निर्दोषों की हत्या जैसी घटनाएं सामने आने लगीं। यह सब देखकर अहिल्याबाई बेहद व्यथित हुईं। राज्य के हित और न्याय के लिए उन्होंने कठोर निर्णय लिया और आदेश दिया कि मालेराव को हाथी के पैरों तले कुचलवा दिया जाए। यह निर्णय एक माता के लिए जितना पीड़ादायक था, उतना ही शासन के लिए ऐतिहासिक भी।

अहिल्याबाई महिलाओं के अधिकारों के प्रति अत्यंत संवेदनशील थीं। उस समय एक नियम था कि किसी पुरुष की मृत्यु के बाद, यदि कोई पुरुष वारिस न हो, तो उसकी संपत्ति राज्य के खजाने में चली जाती थी। अहिल्याबाई ने इस व्यवस्था को बदलते हुए पत्नी या मां को संपत्ति का अधिकार दिलाया। यही नहीं, उन्होंने महिलाओं को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देने की भी शुरुआत की ताकि वे आत्मरक्षा कर सकें।

सांस्कृतिक पुनर्जागरण की अग्रदूत

अहिल्याबाई केवल इंदौर या मालवा तक सीमित नहीं रहीं। उन्होंने देशभर में धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का पुनर्निर्माण कराया। बद्रीनाथ, हरिद्वार, केदारनाथ, अयोध्या, मथुरा, द्वारका, रामेश्वर, पुरी, बनारस, गया – लगभग 130 तीर्थस्थलों पर मंदिर, घाट, धर्मशालाएं और अन्नक्षेत्र बनवाए। बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर और अन्नपूर्णा मंदिर का निर्माण उन्हीं की देन है। उन्होंने कलकत्ता से बनारस तक सड़क भी बनवाई।

अहिल्याबाई का जीवन सादगी और श्रद्धा से भरा था। वे नित्य शिव पूजा करती थीं और बिना पूजन के जल ग्रहण नहीं करती थीं। नर्मदा दर्शन, मछलियों को दाना खिलाना और गरीबों को दान देना उनकी दिनचर्या का हिस्सा था। उनकी निष्ठा और समर्पण के चलते उन्हें “फिलॉसफर क्वीन” और “लोकमाता” जैसे विशेषणों से नवाजा गया।

13 अगस्त 1795 को अहिल्याबाई ने अपने जीवन की अंतिम सांस ली। लेकिन उनके द्वारा लिए गए सामाजिक और प्रशासनिक निर्णय आज भी प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। उनका जीवन यह दर्शाता है कि सच्चे नेतृत्व में करुणा और न्याय दोनों का संतुलन कैसे कायम रखा जा सकता है।

Shivam Verma
Author: Shivam Verma

Description

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ताजा खबरें