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Jagadguru Rambhadracharya: सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने ली गुरुदीक्षा, गुरु दक्षिणा में जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने मांगा PoK

Army Chief General Upendra Dwivedi took initiation
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Jagadguru Rambhadracharya: भारतीय थलसेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी का हाल ही में चित्रकूट दौरा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से खासा उल्लेखनीय रहा। इस दौरान उन्होंने प्रख्यात संत और रामानंद सम्प्रदाय के आचार्य जगद्गुरु रामभद्राचार्य से भेंट कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। यह मुलाक़ात न केवल एक आध्यात्मिक अनुभव के रूप में देखी जा रही है, बल्कि भारतीय सैन्य परंपरा में संतों से संपर्क और प्रेरणा लेने की परंपरा को आगे बढ़ाने का प्रतीक भी मानी जा रही है।

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आध्यात्मिक चर्चा और राम मंत्र की दीक्षा

इस विशेष अवसर पर जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने जनरल द्विवेदी को ‘राम मंत्र’ की दीक्षा दी। संत रामभद्राचार्य ने बताया कि यह वही मंत्र है जिसे, उनके अनुसार, माता सीता ने स्वयं भगवान हनुमान को दिया था और उसी मंत्र के प्रभाव से हनुमान ने रावण की लंका पर विजय प्राप्त की थी। उन्होंने कहा, “जनरल द्विवेदी मेरे पास चित्रकूट आए थे और उन्होंने वह दीक्षा ली जो कभी माता सीता ने हनुमान को दी थी। मैंने उन्हें वही शक्ति प्रदान की है।”

गुरु दक्षिणा में उठी PoK की मांग

इस भेंट के दौरान एक अनोखा प्रसंग तब देखने को मिला जब जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने मुस्कराते हुए गुरु दक्षिणा में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) की मांग की। उन्होंने कहा, “मुझे दक्षिणा में कुछ नहीं चाहिए, बस PoK चाहिए।” यह बात सुनते ही वहां मौजूद लोगों के बीच ठहाकों की गूंज सुनाई दी। हालांकि यह कथन एक हल्के-फुल्के अंदाज़ में किया गया, लेकिन इसमें निहित भाव और देशभक्ति की भावना को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

भारतीय सैन्य परंपरा और संतों से जुड़ाव

जनरल उपेंद्र द्विवेदी की यह यात्रा न केवल एक आध्यात्मिक पहलू से महत्वपूर्ण रही, बल्कि यह भारतीय सेना के उस पक्ष को भी सामने लाती है जहां अधिकारी जीवन के उच्च मूल्यों और संस्कारों से प्रेरणा प्राप्त करते हैं। सेना और संतों के बीच का यह संवाद भारत की प्राचीन परंपरा का हिस्सा रहा है। समय-समय पर अनेक सैन्य अधिकारी और जवान आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए संतों और मठों का रुख करते रहे हैं।

जगद्गुरु रामभद्राचार्य न केवल एक विख्यात संत हैं, बल्कि संस्कृत, हिंदी और तुलसी साहित्य में उनका योगदान अत्यंत सराहनीय है। उन्होंने तुलसी पीठ की स्थापना की है और दिव्यांगों के लिए भी अनेक शैक्षणिक कार्य किए हैं। वे दृष्टिहीन होते हुए भी कई भाषाओं के ज्ञाता हैं और देशभर में उनके अनुयायियों की बड़ी संख्या है।

Shivam Verma
Author: Shivam Verma

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