Makar Sankranti 2025: साल 2025 का आरंभ होने जा रहा है। इसी के साथ नए साल की शुरुआत मकर संक्रांति के पर्व के साथ हो रही है। संक्रांति के पर्व का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। जब भी सूर्य मकर राशि में जाते हैं तो उसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रांति का पर्व देशभर में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। वैसे तो साल भर में 12 संक्रांति आती हैं लेकिन, इन सभी में से मकर संक्रांति का विशेष महत्व माना गया है। देश के कई अलग-अलग हिस्सों में मकर संक्रांति को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। आइए जानते हैं साल 2025 में कब मनाई जाएगी मकर संक्रांति। साथ ही जानें मकर संक्रांति का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि।
मकर संक्रांति हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो हर साल सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर मनाया जाता है। यह त्योहार सूर्य की उत्तरायण गति की शुरुआत को दर्शाता है, जो धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन से दिन की अवधि बढ़ने लगती है और ऋतुओं में परिवर्तन के साथ-साथ कृषि कार्यों में भी नए सिरे से शुरुआत होती है।
सूर्य उत्तरायण का महत्व (sury Uttarayana ka Mahtava)
मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है, जिसका अर्थ है कि सूर्य दक्षिण से उत्तर की ओर गति करने लगता है। उत्तरायण को देवताओं का दिन कहा जाता है, और यह समय शुभ कार्यों के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों में इसे मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करने वाला समय भी बताया गया है। महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही अपने प्राण त्यागे थे।
Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति 2025 दान पुण्य व शुभ मुहूर्त ?
- 14 जनवरी 2025 मंगलवार के दिन दान पुण्य के लिए सुबह में 7 बजकर 15 मिनट से लेकर 1 बजकर 25 मिनट का समय दान पुण्य के लिए सबसे उत्तम समय रहेगा।
ब्रह्म मुहूर्त में 5 बजकर 27 मिनट से 6 जकर 21 मिनट तक भी स्नान दान पुण्य किया जाता है।
अमृत चौघड़िया सुबह 7 बजकर 55 मिनट से 9 बजकर 29 मिनट तक भी आप दान पुण्य कर सकते हैं।
मकर संक्रांति पर गंगा, यमुना, या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन तिल, गुड़, चावल, कंबल, और अनाज का दान करना शुभ होता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन किया गया दान कई गुना फल देता है और जीवन में सुख-समृद्धि लाता है।
बतया जाता है की मकर संक्रांति के दिन ही गंगा सागर में जाकर मिली थीं। दरअसल, गंगा भागीरथ के पीछे पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम में पहुंची इसके बाद सागर में जा मिलीं। इस दिन ही भागीरथ जी ने अपने पूर्वजों के नाम से तर्पण भी किया था।
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