पार्वती वल्लभा अष्टकम (Parvati Ashtakam), भगवान शिव और माता पार्वती की स्तुति में लिखे गए आठ श्लोकों की रचना है। इस अष्टकम् में भगवान शिव की दिव्य विशेषताओं का सुंदर रूप से वर्णन किया गया है, जिन्हें वेद और ऋषि लोग भी गुणगान करते हैं। भगवान शिव को आशीर्वादों के दाता, कल्याणकारी और सबकी मदद करने वाले रूप में जाना जाता है।
पार्वती वल्लभा अष्टकम्
नमो भूतनाथं नमो देवदेवं नमः कालकालं नमो दिव्यतेजम् ।
नमः कामभस्मं नमश्शान्तशीलं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥
अर्थ – सभी प्राणियों के स्वामी भगवान शिव को नमस्कार है, देवों के देव महादेव को नमन नमस्कार है, कालों के काल महाकाल को नमस्कार है, दिव्य तेज को नमस्कार है, कामदेव को भस्म करने वाले को नमस्कार है, शांत शील स्वरूप शिव को नमस्कार है, पार्वती के वल्लभ अर्थात प्रिय, नीलकंठ को नमस्कार है।
सदा तीर्थसिद्धं सदा भक्तरक्षं सदा शैवपूज्यं सदा शुभ्रभस्मम् ।
सदा ध्यानयुक्तं सदा ज्ञानतल्पं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥
अर्थ – सदैव तीर्थों में सिद्धि प्रदान करने वाले, सदैव भक्तों की रक्षा करने वाले, सदैव शिव भक्तों द्वारा पूज्य, सदैव श्वेत भस्मों से लिपटे हुए, सदैव ध्यान युक्त रहने वाले, सदैव ज्ञान सैय्या पर शयन करने वाले नीलकंठ पार्वती वल्लभ को नमस्कार है।
श्मशानं शयानं महास्थानवासं शरीरं गजानां सदा चर्मवेष्टम् ।
पिशाचं निशोचं पशूनां प्रतिष्ठं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥
अर्थ – श्मशान में शयन करने वाले, महास्थान अर्थात कैलाश में राज करने वाले, शरीर में सदैव गज चर्म धारण करने वाले, पिशाच, भूत प्रेत, पशुओं, आदि के स्वामी नीलकंठ पार्वती-वल्लभ को मैं नमस्कार करता हूं।
फणीनागकण्ठे भुजङ्गाद्यनेकं गले रुण्डमालं महावीर शूरम् ।
कटिव्याघ्रचर्मं चिताभस्मलेपं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥
अर्थ – कंठ में अनेकों विषधर नाग धारण करने वाले, गले में मुंड माला धारण करने वाले, महावीर पराक्रमी कटि प्रदेश में व्याघ्र चर्म धारण करने वाले, शरीर में चिता भस्म लगाने वाले, नीलकंठ पार्वती-वल्लभ को मैं नमस्कार करता हूं।
शिरश्शुद्धगङ्गा शिवा वामभागं बृहद्दीर्घकेशं सदा मां त्रिणेत्रम् ।
फणीनागकर्णं सदा फालचन्द्रं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥
अर्थ – जिनके मस्तक पर गंगा है तथा वामभाग पर शिवा अर्थात पार्वती विराजती हैं, जिनके केश बड़ी बड़ी जटाएं हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, कानों को विषधर नाग सुशोभित करते हैं, मस्तक पर सदैव चंद्रमा विराजमान है, ऐसे नीलकंठ पार्वती-वल्लभ को मैं नमस्कार करता हूं।
करे शूलधारं महाकष्टनाशं सुरेशं वरेशं महेशं जनेशम् ।
धनेशामरेशं ध्वजेशं गिरीशं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥
अर्थ – हाथों में त्रिशूल धारण करने वाले, भक्तों के कष्टों को हरण करने वाले, देवताओं में श्रेष्ठ, वर प्रदान करने वाले, महेश, मनुष्यों के स्वामी, धन के स्वामी, ध्वजाओं के स्वामी, पर्वतों के स्वामी, नीलकंठ पार्वती-वल्लभ को मैं नमस्कार करता हूं।
उदासं सुदासं सुकैलासवासं धरानिर्धरं संस्थितं ह्यादिदेवम् ।
अजाहेमकल्पद्रुमं कल्पसेव्यं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥
अर्थ – अपने भक्तों के जो दास हैं, कैलाश में वास करते हैं, जिनके कारण यह ब्रह्मांड स्थित है, आदिदेव हैं जो स्वयंभू दिव्य, सहस्त्र वर्षों तक पूज्य, नीलकंठ पार्वती-वल्लभ को मैं नमस्कार करता हूं।
मुनीनां वरेण्यं गुणं रूपवर्णं द्विजैस्सम्पठन्तं शिवं वेदशास्त्रम् ।
अहो दीनवत्सं कृपालं महेशं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥
अर्थ – मुनियों के लिए जो वरेण्य हैं, जिनके रूपों, गुणों वर्णों आदि की स्तुति द्विजों द्वारा की जाती है, तथा वेदों में कहे गए हैं दीनदयाल कृपालु, महेश, नीलकंठ, पार्वती-वल्लभ को मैं नमस्कार करता हूं।
सदा भावनाथं सदा सेव्यमानं सदा भक्तिदेवं सदा पूज्यमानम् ।
मया तीर्थवासं सदा सेव्यमेकं भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥
अर्थ – सभी प्राणियों के स्वामी, सदैव सेवनीय, पूज्य, मेरे द्वारा सभी देवताओं में पूज्य, नीलकंठ पार्वती-वल्लभ को मैं नमस्कार करता हूं।
पार्वती वल्लभा अष्टकम् पढ़ने के फायदे
पार्वती वल्लभा अष्टकम् का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में कई लाभ होते हैं। इस अष्टकम् का जाप करते समय अगर आप मन को शांत रखकर और भगवान के चरणों में समर्पित होकर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो इसके कई सकारात्मक प्रभाव होते हैं।
1. कष्टों का निवारण: यह माना जाता है कि पार्वती वल्लभा अष्टकम् का नियमित पाठ करने से भक्त के जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
2. माता पार्वती और भगवान शिव की कृपा: इस अष्टकम् का पाठ करने से माता पार्वती और भगवान शिव की विशेष कृपा भक्तों पर बनी रहती है। जिससे जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
3. मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति: पार्वती वल्लभा अष्टकम् का जाप करने से मानसिक शांति और आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है।
4. जीवन में सकारात्मक परिवर्तन: इसका पाठ करने से जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और व्यक्ति की सोच में सुधार होता है।
5. साहस और आत्मविश्वास: नियमित रूप से इस अष्टकम् का पाठ करने से व्यक्ति को नया करने का साहस मिलता है। असफलता का डर कम होता है और सफलता की ओर कदम बढ़ते हैं।
6. दुर्भाग्य का नाश: माना जाता है कि पार्वती वल्लभा अष्टकम् का पाठ करने से मनुष्य का दुर्भाग्य पलट सकता है और जीवन में नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है।
इस प्रकार, पार्वती वल्लभा अष्टकम् का जाप मानसिक शांति, आशीर्वाद और सफलता के लिए बहुत लाभकारी साबित हो सकता है। इसलिए भक्तजन इसका पाठ अवश्य ही करते हैं।
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