Gorakhpur News: उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में एक मासूम बच्ची को मुख्यमंत्री से शिकायत के बाद महज़ तीन घंटे में स्कूल में दाखिला मिल गया। लेकिन सीएम योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर में अब भी 1451 बच्चे शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) के तहत दाखिले की आस में स्कूलों और शिक्षा विभाग के दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं।
गोरखपुर के बच्चों की सुध कौन लेगा?
मुरादाबाद के रामगंगा विहार निवासी अमित कुमार बीते तीन महीनों से अपनी बेटी वाची का दाखिला सीएल गुप्ता वर्ल्ड स्कूल में RTE के तहत करवाने की कोशिश कर रहे थे। कभी बीएसए कार्यालय जाते, तो कभी स्कूल के चक्कर लगाते। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। हारकर उन्होंने लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से जनता दर्शन में गुहार लगाई। सीएम के निर्देश के बाद केवल तीन घंटे में बच्ची का दाखिला एलॉट स्कूल में हो गया।
अमित कुमार पेशे से रैपिडो ड्राइवर हैं और अपनी दोनों बेटियों को बेहतर शिक्षा दिलाने का सपना देख रहे हैं। उनकी मेहनत रंग लाई, लेकिन सवाल यह है कि गोरखपुर के सैकड़ों बच्चों को अब तक क्यों नहीं मिला उनका शिक्षा का अधिकार?
गोरखपुर में अब भी अधूरी है दाखिले की प्रक्रिया
गोरखपुर में RTE के अंतर्गत कुल 4737 सीटों पर बच्चों का दाखिला होना था। लेकिन अब तक सिर्फ 3286 बच्चों को ही स्कूलों में प्रवेश मिल सका है। यानी अब भी करीब 31 प्रतिशत सीटें खाली हैं। जिला प्रशासन ने मई महीने में सभी निजी स्कूलों को चेतावनी दी थी कि अगर वे RTE के तहत गरीब बच्चों को दाखिला नहीं देंगे, तो उनकी मान्यता रद्द कर दी जाएगी। बावजूद इसके कई स्कूल प्रबंधन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा।
दाखिले के चार चरण, फिर भी नहीं मिला पूरा हक
आरटीई के तहत दाखिला प्रक्रिया चार चरणों में पूरी होती है –
- पहला चरण: 1 दिसंबर से 19 दिसंबर
- दूसरा चरण: 1 जनवरी से 19 जनवरी
- तीसरा चरण: 1 फरवरी से 19 फरवरी
- चौथा चरण: 1 मार्च से 19 मार्च
बीएसए (जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी) रमेंद्र कुमार सिंह ने कहा है कि जुलाई में स्कूल खुलने के बाद शेष सीटों पर भी दाखिले की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। साथ ही उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि जो स्कूल आरटीई के नियमों का पालन नहीं करेंगे, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सिविल लाइंस के स्कूलों पर गंभीर आरोप
गोरखपुर के सिविल लाइंस क्षेत्र के नामी स्कूलों पर आरोप है कि वे RTE के तहत बच्चों को दाखिला देने में मनमानी कर रहे हैं। छोटे निजी स्कूल अपेक्षाकृत सहयोग करते हैं, लेकिन बड़े और प्रसिद्ध स्कूलों का रवैया टालमटोल वाला है।
ऐसे स्कूल प्रशासन का तर्क होता है कि सरकार की ओर से जो शुल्क दिया जाता है, वह उनके नियमित फीस स्ट्रक्चर से काफी कम होता है। इसी कारण वे दाखिले को लेकर तरह-तरह के बहाने बनाते हैं। कुछ स्कूल तो दाखिला देने के बाद बच्चों से दोयम दर्जे का व्यवहार भी करते हैं, जिससे बच्चों और उनके माता-पिता को मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ती है।
गोरखपुर में 1451 बच्चों के अभिभावक अब भी बच्चों के अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं। वे कभी स्कूलों के गेट पर गुहार लगाते हैं, तो कभी बीएसए कार्यालय जाकर अपनी फरियाद सुनाते हैं। लेकिन अभी तक किसी निर्णायक समाधान की उम्मीद नजर नहीं आ रही है।

Author: Shivam Verma
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