उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के कादीपुर क्षेत्र में स्थित अघोरपीठ बाबा सत्यनाथ मठ में इस वर्ष भी फाल्गुन मास की चतुर्दशी पर मसान होली का आयोजन भव्य रूप से किया गया। इसे चिता भस्म होली के नाम से भी जाना जाता है, जो एक अनूठी और गहरी धार्मिक आस्था से जुड़ी परंपरा है। गुरुवार रात आयोजित इस कार्यक्रम में श्रद्धालुओं ने पूरे भक्तिभाव और उत्साह के साथ भाग लिया। इस होली का नेतृत्व पीठाधीश्वर अवधूत उग्र चण्डेश्वर कपाली बाबा के मार्गदर्शन में किया गया, जो इस परंपरा को जीवंत बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनका मानना है कि मृत्यु को शोक का नहीं, बल्कि जीवन चक्र का एक स्वाभाविक अंग मानकर स्वीकार करना चाहिए। यही विचारधारा इस विशेष होली उत्सव की मूल भावना है।
क्या है मसान होली
मसान होली की परंपरा भगवान शिव से जुड़ी हुई है, जो मृत्यु और मोक्ष के देवता माने जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव ने यमराज को पराजित करने के बाद श्मशान में होली खेली थी, जिससे यह परंपरा प्रचलित हुई। एक अन्य कथा कहती है कि रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव माता पार्वती को काशी लेकर आए और अपने गणों के साथ रंग और गुलाल से होली खेली। हालांकि, श्मशान में रहने वाले भूत-प्रेत, यक्ष, गंधर्व और किन्नर उस समय इस होली में शामिल नहीं हो सके। इसलिए भगवान शिव ने अपने विशेष अनुयायियों के साथ श्मशान में होली खेलने का निर्णय लिया, ताकि वे भी इस आनंद का हिस्सा बन सकें। यही कारण है कि यह परंपरा आज भी कई स्थानों पर जीवित है।
हालांकि, मसान होली की यह अनूठी परंपरा केवल काशी तक ही सीमित नहीं है। सुल्तानपुर जनपद के कादीपुर तहसील क्षेत्र के अघोरपीठ बाबा सत्यनाथ मठ, अल्देमऊ नूरपुर में भी इसे पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस उत्सव में भक्तजन पारंपरिक अबीर-गुलाल और चिता की राख से होली खेलते हैं, जो इसे अन्य होली आयोजनों से अलग बनाता है। इस दौरान भक्त फगुआ गीतों की धुन पर झूमते हुए भगवान शिव की महिमा का गुणगान करते हैं।
इस वर्ष भी मसान होली का आयोजन अत्यंत उत्साह और आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ संपन्न हुआ। भक्तों ने भगवान शिव को समर्पित इस अनूठे उत्सव में बढ़-चढ़कर भाग लिया और जीवन-मृत्यु के चक्र को स्वीकारने की सीख ली। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करता है, बल्कि हमारी भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक परंपराओं को भी सहेजता है।
