Sultanpur News: जिले की अदालतों में इन दिनों एक गंभीर समस्या सामने आ रही है — सरकारी वकीलों की नियुक्ति लंबे समय से अधर में लटकी हुई है। नतीजा यह है कि अदालतों में अभियोजन पक्ष की मजबूत पैरवी नहीं हो पा रही, जिससे न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। कई गंभीर मुकदमे सिर्फ इसलिए लंबित हो रहे हैं क्योंकि अभियोजन पक्ष की ओर से सशक्त वकील मौजूद नहीं हैं।
कई महीनों से अटकी है नियुक्ति प्रक्रिया
मिली जानकारी के अनुसार, लगभग 10 सरकारी वकीलों के पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया पिछले कई महीनों से लंबित है। एडीजीसी (क्रिमिनल) के दो, एडीजीसी (सिविल) के एक, एडीजीसी (राजस्व) के एक, नामिका अधिवक्ता (फौजदारी) के तीन, और नामिका अधिवक्ता (सिविल) के तीन पद अभी तक खाली हैं। इन सभी पदों पर प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है, फिर भी किसी कारणवश अंतिम मुहर नहीं लग पा रही है।
पैरवी में आ रही है भारी बाधा
इन पदों पर नियुक्ति नहीं होने के कारण सरकारी वकीलों को अत्यधिक भाग-दौड़ करनी पड़ रही है। एक वकील को कई अदालतों में पेश होना पड़ता है, जिससे कई बार जरूरी गवाह बिना बयान दिए ही लौट जाते हैं। कई मामलों में तो महीनों तक सुनवाई ही नहीं हो पाती।
एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने बताया, “अदालतों में जितने मुकदमे चल रहे हैं, उनके हिसाब से वकीलों की संख्या बेहद कम है। एक सरकारी वकील तीन-तीन अदालतों में केस संभाल रहा है। इससे मुकदमों की गुणवत्ता पर असर पड़ता है और ट्रायल लंबा खिंच जाता है।”
गंभीर मामलों पर भी असर, न्याय में हो रही देरी
सबसे चिंता की बात यह है कि हत्या, बलात्कार जैसे गंभीर मामलों में भी अभियोजन पक्ष कमजोर नजर आ रहा है। जब अभियोजन पक्ष से मजबूत पैरवी नहीं होती, तो या तो मामले में देरी होती है या कभी-कभी आरोपी को फायदा मिल जाता है। लंबा ट्रायल होने की वजह से कई बार गवाह पलट जाते हैं, कुछ गवाह अदालत में आने से इनकार कर देते हैं, और कुछ की पारिवारिक स्थिति गवाही देने की इजाजत नहीं देती।
प्रशासन और शासन पर उठ रहे सवाल
अब बड़ा सवाल ये है कि जब सारी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं, तो नियुक्ति प्रक्रिया किस स्तर पर लटक रही है? क्या फाइलें केवल टेबल से टेबल घूम रही हैं या फिर किसी जिम्मेदार अफसर की मंजूरी का इंतजार है? ऐसे में प्रशासन और शासन की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। शासन और संबंधित अधिकारी इस समस्या से वाकिफ हैं, लेकिन अभी तक किसी ठोस कदम का इंतजार किया जा रहा है। न्याय में देरी न्याय से इनकार के बराबर होती है – यह बात सब जानते हैं, लेकिन स्थिति सुधारने की दिशा में गंभीर प्रयास नहीं दिख रहे।

Author: Shivam Verma
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