Sultanpur News: कोतवाली देहात थाना क्षेत्र में विवाहिता की मौत के मामले ने अब गंभीर मोड़ ले लिया है। मृतका के भाई ने अपने बहन की हत्या का आरोप लगाते हुए स्थानीय पुलिस पर आरोपियों को संरक्षण देने और कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद एफआईआर दर्ज न करने का आरोप लगाया है। अब यह मामला न सिर्फ पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर रहा है, बल्कि न्याय व्यवस्था में आम आदमी के विश्वास की भी परीक्षा बनता जा रहा है।
क्या है मामला?
जौनपुर जिले के सिंगरामऊ थाना क्षेत्र स्थित बहरीपुर निवासी महताब शेख ने बताया कि उसकी बहन साफिया बानो की शादी 13 साल पहले सुलतानपुर के छतौना निवासी जुनैद अहमद उर्फ अत्तन से हुई थी। महताब के अनुसार शादी के बाद से ही साफिया का वैवाहिक जीवन सामान्य नहीं रहा। आरोप है कि पति जुनैद का अपनी भाभी से अत्यधिक लगाव था, जिसको लेकर घर में अकसर झगड़े होते रहते थे।
महताब ने बताया कि कई वर्षों तक संतान न होने के बाद हाल ही में साफिया गर्भवती हुई थीं, लेकिन घरवालों में इस बात की खुशी के बजाय तनाव का माहौल बन गया। जुनैद और उसकी भाभी साफिया की गर्भावस्था से असंतुष्ट नजर आए। आरोप है कि साफिया के गर्भवती होने की जानकारी के कुछ ही दिनों बाद 13 अप्रैल को उसकी लाश उसके ही घर में पंखे से दुपट्टे के सहारे लटकती मिली।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट और परिवार के सवाल
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में साफिया के गर्भवती होने की पुष्टि हुई है – उसके गर्भ में एक माह का भ्रूण था। परिवारवालों का कहना है कि जो महिला शादी के 13 साल तक मां बनने की आस में जिंदा रही, वह आखिर खुशखबरी मिलने के बाद खुदकुशी क्यों करेगी? साफिया के भाई ने साफ तौर पर आरोप लगाया कि यह आत्महत्या नहीं, बल्कि सोची-समझी साजिशन हत्या है।
पुलिस की भूमिका पर उठे सवाल
महताब शेख का आरोप है कि जब उसने अपनी बहन की मौत को लेकर स्थानीय थाने में तहरीर दी, तो कोतवाली देहात के तत्कालीन एसओ अखण्डदेव मिश्र ने एफआईआर दर्ज नहीं की। उल्टे उसे तहरीर बदलवाने के लिए दबाव डाला गया और लगातार कई दिनों तक थाने के चक्कर कटवाए गए। पुलिस की इस लापरवाही से परेशान होकर महताब ने सीजेएम कोर्ट की शरण ली।
कोर्ट का आदेश, फिर भी नहीं हुई कार्रवाई
17 मई को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) नवनीत सिंह की अदालत ने इस मामले में गंभीरता दिखाते हुए तीन आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर निष्पक्ष जांच का आदेश दिया। लेकिन हैरानी की बात यह है कि 24 दिन बीतने के बाद भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई। कोर्ट ने अब थाना प्रभारी से 13 जून तक जवाब-तलब किया है।
कस्टडी विवाद में भी पुलिस की विशेष ‘दिलचस्पी’?
इसी प्रकरण से जुड़ी एक और अहम बात सामने आई है कि पुलिस कथित रूप से कुछमुछ गांव के एक पति-पत्नी के विवाद में भी संलिप्त रही है। आरोप है कि नियमों को ताक पर रखकर बच्चों की जबरन कस्टडी दिलाने जैसे मामलों में थाना प्रभारी की विशेष रुचि रही है, जबकि इस प्रकार की संलिप्तता पुलिस की भूमिका और निष्पक्षता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है।

Author: Shivam Verma
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