Meerut News: उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व वाला शहर मेरठ अपनी विशिष्ट परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। यहां की होली मोहल्ले की होली सदियों पुरानी परंपरा को संजोए हुए है। पुराने जमाने में पूरे शहर में सिर्फ एक ही स्थान पर होलिका दहन किया जाता था, और वह स्थान था लाला के बाजार स्थित होली मोहल्ला।
जब उठती हैं लपटें, तो सावधान हो जाते हैं लोग
मेरठ का यह इलाका ऊंची-ऊंची अट्टालिकाओं से घिरा हुआ है। जब होलिका दहन के दौरान आग की लपटें उठती हैं, तो आसपास के लोग अपने घरों की दीवारों पर पानी छिड़कते हैं या टिन की चादरें लगाकर सुरक्षा के इंतजाम करते हैं। हालांकि, जो लोग अब इस मोहल्ले से दूर जा चुके हैं, वे हर साल पूजन करने यहां जरूर आते हैं, जिससे इस ऐतिहासिक परंपरा की भावनात्मक गहराई का अंदाजा लगाया जा सकता है।
दादा-परदादा की परंपरा निभा रहे हैं लोग
इलाके के पुराने निवासी पंडित उमेश शर्मा बताते हैं, “हमारे पूर्वजों ने यहां होली जलाने की परंपरा शुरू की थी, और आज भी हम उसी को निभा रहे हैं। यह केवल एक त्यौहार नहीं, बल्कि हमारे इतिहास, संस्कृति और भावनाओं से जुड़ा एक मजबूत बंधन है।”
65 वर्षीय लल्लू कहते हैं कि बसंत पंचमी के साथ ही इस परंपरा की शुरुआत हो जाती है। इस दिन विशेष पूजन का आयोजन किया जाता है, जो होली के आध्यात्मिक पहलू को और मजबूत करता है। इसके बाद फुलेरा दूज के दिन विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं और अंत में होलिका दहन संपन्न होता है।
लकड़ी नहीं, उपलों से जलती है होली
इस इलाके में होलिका दहन के दौरान लकड़ियों के बजाय उपलों का अधिक उपयोग किया जाता है। खास बात यह है कि दहन के समय कपूर और जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है, जिससे वातावरण शुद्ध रहता है। रंगों के इस उत्सव में टेसू के फूलों से तैयार रंगों से होली खेली जाती है। होली के दिन डीजे की धुनों पर नृत्य होता है, और अबीर-गुलाल उड़ाकर पूरा वातावरण रंगीन बना दिया जाता है।
महिलाओं की विशेष भागीदारी
होलिका पूजन के दौरान महिलाओं की विशेष भागीदारी होती है। वे बड़ी संख्या में एकत्र होकर होलिका माता की पूजा करती हैं और अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। यह परंपरा न सिर्फ धार्मिक आस्था को दर्शाती है, बल्कि समाज में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को भी उजागर करती है।

Author: Shivam Verma
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