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Pongal Date 2025: पोंगल कब है, जानें कैसे और क्यों मनाते हैं यह त्योहार

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Pongal Date 2025: पोंगल दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु में मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इस समय उत्तर भारत में मकर संक्रांति मनाई जाती है, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं। पोंगल फसल के मौसम के आगमन का प्रतीक है। इस दिन लोग गायों और बैलों की पूजा करते हैं और उन्हें रंग-बिरंगे आभूषणों से सजाते हैं। और ये पशु बहुत है प्यारे लगते है। वंही ये त्योहार सूर्य देव को भी समर्पित है। इस दिन लोग समृद्ध फसल की खुशी को धूमधाम ख़ुशी और उत्साह के साथ मनाते हैं। पोंगल का पर्व 4 दिन तक मनाया जाता है, इस साल पोंगल पर्व की शुरुआत 15 जनवरी से हो रही है और इसका समापन 18 जनवरी को होगा। आइए जानते हैं पौंगल कैसे और क्यों मनाता हैं।

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Pongal Date 2025: जानें कब है पर्व?

पोंगल के त्योहार का इतिहास करीब 2000 साल पुराना बताया जाता है। पोंगल की शुरुआत हर साल 14 या 15 जनवरी को होती है। इस बार 14 जनवरी को पोंगल के चार दिवसीय पर्व का पहला दिन है। वहीं 17 को पोंगल पर्व की समाप्ति होती है। मान्यता है कि पोंगल के दिन से ही तमिल नववर्ष की शुरुआत हो रही है। पोंगल तमिल संस्कृति और कृषि परंपराओं का प्रतीक है और इसे बड़ी श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार तमिल नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है और इसे चार दिनों तक मनाया जाता है। अंतिम दिन, जिसे मट्टू पोंगल कहा जाता है, इस दिन पशुधन की पूजा की जाती है। यह दिन कृषि में पशुओं के योगदान के प्रति आभार व्यक्त करने का प्रतीक है।

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क्यों मनाते हैं पोंगल जानिए (kyo manate hei pongal janiye)

उत्तर भारत में मकर संक्रांति, पंजाब में लोहड़ी और गुजरात में उत्तरायण के आसपास तमिलनाडु में पोंगल का पर्व मनाया जाता हैं. पोंगल का त्योहार संपन्नता को समर्पित है. पोंगल में समृद्धि के लिए वर्षा, धूप और कृषि से संबंधित चीजों की पूजा अर्चना की जाती है. इस दिन किसान प्रकृति से जुड़ी वस्तुओं की पूजा करते हैं. पोंगल के मौके पर परिवार के सभी सदस्य एक साथ मिलकर त्योहार मनाते हैं जो आपसी प्रेम और सौहार्द बढ़ाने का अवसर देता है। इसलिए खास है ये त्यौहार।

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कैसे मनाते हैं पोंगल ?

  • पोंगल का उत्सव पुरे चार दिन का होता है। पोंगल के पहले दिन को भोगी पांडिगई के नाम से जाना जाता है, इस दिन घर की साफ सफाई करते हैं और बेकार के सामान को घर से निकालकर अलाव जलाते हैं और इंद्र देवता की पूजा अर्चना करते हैं। और उन्हें प्रसन्न किया जाता है।
  • पोंगल का दूसरा दिन सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे थाई पोंगल के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान सूर्यदेव की पूजा अर्चना की जाती है। साथ ही करई पोंगल के पारंपरिक पकवान के साथ मनाया जाता है। साथ ही फसल पर सूर्यदेव की कृपा बनी रहे, इसके लिए विनती करते हैं।
  • पोंगल के तीसरे दिन को मट्टू पोंगल के रूप में जाना जाता है। इस दिन मवेशियों को सजाते संवारते हैं और उनकी पूजा व सेवा करते हैं और उनका आभार व्यक्त किया जाता है क्योंकि फसल को जोतने में इनका प्रयोग किया जाता है।
  • पोंगल के चौथे और अंतिम दिन को कन्या पोंगल कहते हैं। इस दिन को कन्नुम की रस्म के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गन्ने रखकर दूध, चावल, घी आदि चीजों से पकवान बनाकर इसका भोग सूर्यदेव को लगाया जाता है। पोंगल के हर दिन अलग-अलग परंपराओं और रीति रिवाजों का पालन किया जाता है।

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