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Baghpat News: सम्पूर्ण समाधान दिवस बना सिर्फ औपचारिकता का मंच, अफसरों की बेरुखी से आहत हुई जनता

Sampoorna Samadhan Diwas became a platform for mere formality
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Baghpat News: बागपत जिले के बड़ौत तहसील में सोमवार को आयोजित सम्पूर्ण समाधान दिवस ने एक बार फिर प्रशासनिक संवेदनशीलता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। जिलाधिकारी अस्मिता लाल की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य आम जनता की समस्याएं सुनना और उनका समाधान करना था, लेकिन मौके पर पहुंचे फरियादियों को कुछ और ही नज़ारा देखने को मिला।

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मोबाइल में उलझे अधिकारी, जनता रही उपेक्षित

कार्यक्रम स्थल पर अधिकारियों की स्थिति देखकर ऐसा लगा जैसे समाधान दिवस नहीं, बल्कि कोई निजी समय हो। जहां एक ओर आम लोग अपनी समस्याओं के निस्तारण की उम्मीद लेकर कतार में खड़े थे, वहीं दूसरी ओर कई अफसर अपने मोबाइल फोन में व्यस्त दिखे। कोई व्हाट्सएप पर चैटिंग कर रहा था, तो कोई इंस्टाग्राम पर रील्स देख रहा था। कुछ अधिकारियों को यूट्यूब पर वीडियो का आनंद लेते हुए भी देखा गया।

स्थिति यह रही कि कई फरियादियों को या तो सुना ही नहीं गया, या फिर महज़ औपचारिकता निभाते हुए उन्हें वापस भेज दिया गया। लोगों की उम्मीदें उस वक्त टूटती नजर आईं जब उन्हें यह महसूस हुआ कि उनकी बात को कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है।

समाधान दिवस की असली मंशा क्या है?

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा हर माह प्रत्येक तहसील में सम्पूर्ण समाधान दिवस का आयोजन किया जाता है। इसका उद्देश्य होता है कि आम जनता अपनी शिकायतें सीधे उच्च अधिकारियों के समक्ष रख सके और उन्हें समयबद्ध तरीके से समाधान मिल सके। इससे प्रशासनिक व्यवस्था में पारदर्शिता और ज़मीनी जवाबदेही सुनिश्चित हो सके।

लेकिन बड़ौत में हुए आयोजन ने सरकार की इस मंशा को झुठलाते हुए एक अलग ही तस्वीर पेश की। जनता समाधान की आशा लेकर आई थी, लेकिन मिला तो बस बेरुखी और उदासीनता।

वरिष्ठ अधिकारियों की चुप्पी भी सवालों के घेरे में

इस आयोजन में जिलाधिकारी अस्मिता लाल, उप जिलाधिकारी सहित कई वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे, लेकिन किसी ने भी मोबाइल में उलझे अपने सहयोगियों को टोकने की कोशिश नहीं की। यह चुप्पी कहीं न कहीं इस बात का संकेत देती है कि या तो इस लापरवाही को मौन सहमति मिली हुई है या फिर यह रवैया अब सामान्य बन चुका है।

जनता की उम्मीदों पर पानी

सम्पूर्ण समाधान दिवस उन लोगों की आखिरी उम्मीद होता है जो लगातार सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने के बाद थक हारकर इस मंच पर पहुंचते हैं। लेकिन जब यहां भी उनकी उपेक्षा हो, तो यह सिर्फ एक व्यक्ति की समस्या नहीं रह जाती, बल्कि यह पूरे प्रशासनिक ढांचे की साख पर सवाल बन जाता है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले भी कई बार अफसरों को जनता की शिकायतों को गंभीरता से लेने की चेतावनी दे चुके हैं। इसके बावजूद अगर ऐसी लापरवाह कार्यशैली सामने आती है, तो यह प्रशासनिक अनुशासन पर भी प्रश्नचिन्ह है।

Shivam Verma
Author: Shivam Verma

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