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Chandauli News: आधार कार्ड बनवाने के लिए डाकघर के चक्कर लगा रहा बेबस पिता, भीतर सन्नाटा

A helpless father is making rounds of the post office to get his Aadhaar card made
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Chandauli News: बच्चों को साथ लेकर रोज़ सुबह घर से निकलता हूं, उम्मीद होती है कि आज काम हो जाएगा… लेकिन दोपहर होते-होते वही जवाब—‘आज नहीं हो पाएगा, कल आना।’” यह दर्दभरी बात है धोबही गांव के रहने वाले दूधनाथ की, जो पिछले तीन दिनों से अपने तीन बेटों के आधार कार्ड बनवाने के लिए नौगढ़ स्थित डाकघर के चक्कर काट रहे हैं।

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धोबही गांव, जो ब्लॉक मुख्यालय से करीब 20 से 25 किलोमीटर की दूरी पर बसा है, वहां से रोज़ाना सुबह अपने बच्चों—12 वर्षीय अंगद, 15 वर्षीय श्रवण और 8 वर्षीय भीम—को लेकर दूधनाथ डाकघर पहुंचते हैं। इन तीनों का आधार कार्ड या तो बना नहीं है या उसमें त्रुटियां हैं, जिन्हें ठीक कराने के लिए उन्हें डाकघर के चक्कर काटने पड़ रहे हैं।

डाकघर के बाहर कतारें, भीतर सन्नाटा

नौगढ़ बाजार के डाकघर में प्रतिदिन कई आदिवासी और गरीब तबके के लोग आधार से जुड़ी सेवाओं के लिए लंबी लाइन लगाते हैं। इनमें से ज़्यादातर लोग अनपढ़ हैं और सरकारी प्रक्रियाओं की जटिलता उनके लिए किसी पहेली से कम नहीं।

स्थानीय लोगों का कहना है कि डाकघर में एक ‘अघोषित नियम’ चलता है—अगर आप ‘सुविधा शुल्क’ दे सकते हैं, तो आपका काम तुरंत हो जाएगा। लेकिन जो नहीं दे सकते, वे धूप में घंटों खड़े रहकर भी निराश ही लौटते हैं।

दूधनाथ की बेबसी- न भूख देखी, न धूप

दूधनाथ बताते हैं, “तीन दिन से भूखे-प्यासे बच्चों को लेकर सुबह-सुबह निकलता हूं। 3 बजे तक खड़े रहते हैं, फिर कहा जाता है कि अब नहीं हो पाएगा। जब मैंने कहा कि पैसे नहीं हैं, तो मुझे कल आने को कह दिया गया।”

तीन दिन से यही सिलसिला चल रहा है। बच्चों की आंखों में थकान है, चेहरे पर मायूसी। लेकिन मजबूरी ऐसी है कि अगले दिन फिर आना ही पड़ता है।

गरीबी की दीवार, सुविधा की कीमत

नौगढ़ क्षेत्र में कई लोग दूधनाथ जैसे ही हालात से जूझ रहे हैं। किसी को वृद्धावस्था पेंशन चाहिए, किसी को राशन कार्ड में नाम जोड़ना है, तो किसी को स्कूल में बच्चों का दाखिला कराना है—इन सभी कार्यों के लिए आधार कार्ड ज़रूरी है। लेकिन जब आधार ही नहीं बन पा रहा या उसमें सुधार नहीं हो पा रहा, तो बाकी चीज़ें कैसे होंगी?

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह समस्या कोई नई नहीं है। पिछले कई महीनों से यही हाल है। कई बार शिकायत की गई, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। अब लोग खुद ही तय कर लेते हैं कि ‘पैसे दो, तो काम होगा।’

Shivam Verma
Author: Shivam Verma

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