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Chandauli News: सीएमओ ऑफिस में प्रमोशन घोटाले की परतें खुलती जा रही हैं, भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई के बजाय दबाने की कोशिश

Chief Medical Officer Chandauli
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Chandauli News: मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) कार्यालय, जो जनता की स्वास्थ्य सेवाओं का केंद्र माना जाता है, अब भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरता नजर आ रहा है। डिप्टी सीएमओ डॉ. जेपी गुप्ता द्वारा फर्जी तरीके से प्रमोशन लेने के मामले में एक और बड़ा खुलासा सामने आया है, जिससे पूरे स्वास्थ्य महकमे में हड़कंप मच गया है। हैरानी की बात यह है कि मामले की गंभीरता के बावजूद इसे दबाने की कोशिशें भी खुलकर सामने आ रही हैं।

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फर्जी वरिष्ठता क्रमांक के आधार पर प्रमोशन

डॉ. जय प्रकाश गुप्ता ने अपने ही नाम के एक अन्य चिकित्साधिकारी के वरिष्ठता क्रमांक (12441) का लाभ उठाकर पदोन्नति ले ली, जबकि उनका वास्तविक क्रमांक 13171 था। इस गलती को उन्होंने स्वयं 21 फरवरी 2025 को दिए गए अपने अभ्यावेदन में स्वीकार भी किया है। उन्होंने बताया कि यह गलती ‘भूलवश’ हुई और उन्होंने लेवल 2 और लेवल 3 के प्रमोशन प्रमाणपत्रों पर गलत क्रमांक का उल्लेख कर दिया।

लेकिन सवाल यह उठता है कि यह ‘भूल’ इतनी आसानी से हो कैसे गई? और अगर यह एक इंसानी चूक थी, तो कार्यालय के बाबुओं ने इसे समय रहते पकड़ा क्यों नहीं? कहीं यह जानबूझकर की गई चूक तो नहीं?

सीएमओ कार्यालय की भूमिका पर सवाल

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. युगल किशोर राय ने एक आधिकारिक पत्र में डॉ. गुप्ता के प्रमोशन को निरस्त करते हुए इस गलती की पुष्टि की है। पत्र में स्पष्ट किया गया है कि 16 फरवरी 2022 को जारी किए गए प्रमोशन आदेशों को रद्द किया जाता है। इस जानकारी को महानिदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं, अपर निदेशक वाराणसी मंडल, वरिष्ठ कोषाधिकारी चंदौली, और स्वयं डॉ. गुप्ता को भी भेजा गया है।

लेकिन जब इस मुद्दे पर मीडिया ने सवाल उठाए, तो सीएमओ साहब टालमटोल करते नजर आए। ऐसा प्रतीत होता है कि उच्च अधिकारियों की मिलीभगत से इस मामले को धीरे-धीरे ‘ठंडे बस्ते’ में डालने की कोशिश की जा रही है।

प्रशासनिक लापरवाही या मिलीभगत?

अगर कोई चिकित्साधिकारी फर्जी तरीके से प्रमोशन प्राप्त करता है, तो इसके लिए अकेले उसी को दोषी ठहराना न्यायसंगत नहीं होगा। कार्यालय में प्रमोशन से जुड़े दस्तावेजों की जांच, अनुमोदन और सत्यापन का कार्य क्लर्कों और वरिष्ठ अधिकारियों के जिम्मे होता है। फिर इतनी बड़ी गलती बिना उनकी जानकारी या अनुमति के कैसे हो गई? क्या यह एक संगठित प्रयास था?

सूत्रों की मानें तो पूरे मामले की जांच के बजाय उसे दबाने की कोशिश की जा रही है। जबकि यह एक गंभीर प्रशासनिक चूक ही नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है। यह भी चिंता का विषय है कि जब मामला सार्वजनिक हुआ तो क्यों न तो दोषियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई की गई और न ही पारदर्शिता से जवाब दिए गए।

Shivam Verma
Author: Shivam Verma

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