Jhansi News: झांसी जिले के बरुआसागर क्षेत्र की उपजाऊ मिट्टी में उगाई जाने वाली खास किस्म की अदरख अब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान की ओर अग्रसर है। बरुआसागर के सनौरा गांव के किसान परिवारों द्वारा पीढ़ियों से उगाई जा रही इस सुगंधित और स्वादिष्ट अदरख के लिए जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) टैग की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इस दिशा में पहला कदम बढ़ाते हुए किसानों की एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) ने औपचारिक रूप से आवेदन प्रस्तुत किया है।
अदरख की खासियत से मुरीद हैं लोग
सनौरा के किसान गुलाब चंद कुशवाहा और शिव गोपाल ने यह दावा किया है कि उनकी अदरख में जो स्वाद और सुगंध है, वह देश के किसी और हिस्से की अदरख में नहीं मिलती। गुलाब चंद बताते हैं कि यह खेती उनके पूर्वजों से जुड़ी परंपरा है और वे करीब एक एकड़ भूमि पर जैविक तरीके से अदरख की खेती करते आ रहे हैं। खास बात यह है कि इस खेती में कोई रासायनिक खाद इस्तेमाल नहीं होता, सिर्फ जैविक खाद और कंपोस्ट से ही उपज तैयार की जाती है।
गुलाब चंद कहते हैं, “हम हर साल लगभग 45 से 50 कुंतल अदरख की पैदावार कर लेते हैं। इससे करीब एक लाख रुपये की आमदनी हो जाती है। लेकिन इस अदरख की असली ताकत इसकी सुगंध और स्वाद है, जो इसे बाकी सभी से अलग करती है।”
जीआई टैग का दावा और जांच प्रक्रिया
एफपीओ के सदस्यों ने सोमवार को उद्यान विभाग के अधीक्षक डॉ. प्रशांत सिंह से मुलाकात कर जीआई टैग के लिए आवेदन प्रस्तुत किया। डॉ. सिंह ने जानकारी दी कि इस अदरख के नमूने अब लखनऊ की प्रयोगशाला में भेजे जा रहे हैं, जहां इसकी सुगंध, स्वाद और औषधीय गुणों की वैज्ञानिक जांच की जाएगी।
अगर प्रयोगशाला की जांच में यह प्रमाणित हो जाता है कि इस अदरख में विशिष्ट गुण मौजूद हैं और उसका झांसी क्षेत्र से सीधा संबंध है, तो इसे जीआई टैग मिल सकता है। यह टैग किसी भी उत्पाद की विशिष्ट भौगोलिक पहचान और गुणों की कानूनी मान्यता होती है, जो उसके उत्पादक क्षेत्र को अलग पहचान दिलाती है।
पहले हल्दी को नहीं मिल पाया था टैग
गौरतलब है कि इससे पहले बरुआसागर की हल्दी के लिए भी जीआई टैग का दावा किया गया था, लेकिन वह प्रयास सफल नहीं हो सका क्योंकि हल्दी उस स्तर की विशिष्टता साबित नहीं कर पाई थी। इस बार किसानों को उम्मीद है कि अदरख के विशेष गुण उन्हें यह पहचान दिलाने में मदद करेंगे।
यदि यह अदरख जीआई टैग पाने में सफल हो जाती है, तो न सिर्फ इसका उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचाने में भी मदद मिलेगी। इससे किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी होगी और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी नया बल मिलेगा।

Author: Shivam Verma
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