Sultanpur News: स्थायी लोक अदालत के फैसले से ट्रेन हादसे में जान गंवा चुके मृतक की मां को न्याय मिला है। अदालत ने तत्कालीन एसडीएम-अमेठी के मनमाने आदेश को बड़ा झटका देते हुए याची महिला गौरा देवी को कृषक दुर्घटना बीमा की धनराशि पांच लाख रुपये एवं मानसिक कष्ट व वाद व्यय के रूप में 20 हजार रुपये अदा करने का आदेश दिया। यह आदेश स्थायी लोक अदालत के चेयरमैन राधेश्याम यादव-द्वितीय ने पारित किया।
स्थायी लोक अदालत के निर्णय के अनुसार, डीएम व एसडीएम अमेठी को आदेश की तिथि से एक माह के भीतर छह प्रतिशत ब्याज सहित क्षतिपूर्ति राशि का भुगतान करना होगा। यह फैसला पीड़ित महिला के लिए तीन वर्षों के लंबे संघर्ष के बाद राहत लेकर आया है। अदालत के सदस्य रमेश चंद्र यादव व मृदुला राय ने भी इस फैसले का समर्थन किया।
एसडीएम अमेठी की लापरवाही उजागर
अदालत ने एसडीएम अमेठी के खिलाफ टिप्पणी करते हुए कहा कि या तो उन्हें विधिक ज्ञान नहीं है या फिर उन्होंने जानबूझकर आवेदन को निरस्त किया। इससे प्रशासन की लापरवाही सामने आई है। अमेठी तहसील के खेरौना गांव की निवासी गौरा देवी के पुत्र अजय कुमार की 18 दिसंबर 2021 को ट्रेन दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उनके पति की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी, जिससे यह परिवार और भी संकट में आ गया।
गौरा देवी के अनुसार, बेटे की आकस्मिक मृत्यु के बाद वह मानसिक रूप से बेहद परेशान थीं, जिसके चलते उन्होंने मुख्यमंत्री कृषक दुर्घटना बीमा के लिए कुछ दिनों बाद आवेदन किया। हालांकि, स्थानीय लेखपाल और कानूनगो ने मामूली देरी को आधार बनाकर उन्हें अपात्र घोषित कर दिया। एसडीएम अमेठी ने भी अपने अधीनस्थों की रिपोर्ट को बिना जांचे-परखे स्वीकार कर लिया और महिला का आवेदन निरस्त कर दिया।
हाईकोर्ट के आदेश को किया गया नजरअंदाज
पीड़िता ने इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश और विधि व्यवस्था की नजीर पेश करते हुए पुनः आवेदन किया, जिसमें तीन वर्षों तक की छूट का प्रावधान था। बावजूद इसके, एसडीएम अमेठी ने फिर से आवेदन खारिज कर दिया। न्याय की उम्मीद छोड़ चुकी गौरा देवी ने स्थायी लोक अदालत का दरवाजा खटखटाया और डीएम व एसडीएम अमेठी को विपक्षी बनाकर वाद दायर किया।
विचारण के दौरान याची ने साक्ष्य प्रस्तुत किए और स्वयं को बीमा धनराशि का पात्र बताया। अदालत ने उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर पाया कि एसडीएम अमेठी का आदेश पूरी तरह से मनमाना था।
प्रशासन को मिली सीख
स्थायी लोक अदालत ने अपने निर्णय में टिप्पणी करते हुए कहा कि हाईकोर्ट के आदेश को नजरअंदाज करना गंभीर त्रुटि है और इससे यह स्पष्ट होता है कि या तो संबंधित अधिकारी विधिक प्रक्रिया से अनभिज्ञ हैं या उन्होंने जानबूझकर गलत निर्णय लिया। अदालत ने आदेश दिया कि एक माह के भीतर भुगतान न करने पर विपक्षियों के खिलाफ आवेदन दायर किया जा सकता है, जिसका खर्च भी विपक्षियों को ही उठाना पड़ेगा।

Author: Shivam Verma
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