Basant Panchami 2025 Date: हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। यह साल 2025 में किस दिन पड़ रही है बसंत पंचमी से ही भारत में वसंत ऋतु की शुरुआत होती है और इस दिन महिलाएं पीले रंग के वस्त्र धारण करती हैं। इसके साथ वर्ष 2025 में कब है बसंत पंचमी का पर्व?और कैसे की जाती है माँ सरस्वती पूजा?
हिंदू धर्म में माघ मास का विशेष महत्व है। इसके साथ ही इस माह पड़ने वाली बसंत पंचमी को शुभ माना जाता है। इस दिन मां सरस्वती की विधिवत पूजा करने का विधान है। वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन मां सरस्वती का अवतरण हुआ था। इसके साथ ही बसंत पंचमी का सनातन धर्म में अत्यधिक महत्व है और इस दिन पीले रंग के उपयोग को शुभ माना जाता है। इस दिन देवी सरस्वती सहित भगवान विष्णु, कामदेव एवं श्रीपंचमी का पूजन किया जाता है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा करना विशेष रूप से फलदायी होता है इस साल पंचमी तिथि दो दिन होने के कारण असमंजस की स्थिति बनी हुई है कि आखिर किस दिन बसंत पंचमी का पर्व मनाना शुभ माना जाएगा। आइए जानते हैं बसंत पंचमी की सही तिथि, महत्व, सरस्वती पूजा मुहूर्त और वंदना…
कब है बसंत पंचमी 2025? (Basant Panchami 2025 Date and Time)
वैदिक पंचांग के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 2 फरवरी को सुबह 11 बजकर 54 मिनट से आरंभ हो रही है, जो अगले दिन यानी 3 फरवरी को सुबह 9 बजकर 36 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे उदया तिथि के हिसाब से बंसत पंचमी का पर्व 3 फरवरी को मनाया जाएगा।
बसंत पंचमी पूजा का समय (Basant Panchmi kab hai?)
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस दिन सुबह 7 बजकर 10 मिनट से लेकर 9 बजकर 30 मिनट तक के बीच मां सरस्वती की विधिवत पूजा कर सकते हैं।
मां सरस्वती को अर्पित करें ये चीजें (Basant Panchami 2025 Offer These Things)
मां सरस्वती को पीला रंग अति प्रिय है। इसलिए बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती को पीला फूल, पीले वस्त्र अर्पित करने के साथ पीले रंग की मिठाई से भोग लगाएं। इसके अलावा मां सरस्वती को कॉपी, पैन या अन्य शिक्षा और कला संबंधित चीजें अर्पित कर सकते हैं।
वसंत पंचमी पूजा विधि
- पूजा स्थान की साफ़-सफाई करने के बाद गंगा जल ऋषि पंचमी का छिड़काव करें।
- इसके पश्चात देवी सरस्वती की प्रतिमा को चौकी पर स्थापित करें।
- अब सर्वप्रथम विघ्नहर्ता गणेश का ध्यान करें और उसके पश्चात कलश की स्थापना करें।
- मां सरस्वती को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें।
- इसके बाद देवी को रोली, चंदन, हल्दी, केसर, चंदन, पीले या सफेद रंग के पुष्प और अक्षत अर्पित करें।
- देवी सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सरस्वती स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
- अब दोनों हाथ जोड़कर माता सरस्वती का ध्यान एवं उनसे प्रार्थना करें।
- अंत में देवी सरस्वती की आरती करें और उन्हें प्रसाद रूप में पीली मिठाई का भोग लगाएं।
बसंत पंचमी 2025 महत्व
हिंदू धर्म में बसंत पंचमी का विशेष महत्व है। इस दिन ज्ञान. शिक्षा, कला और वाणी की देवी मां सरस्वती की विधिवत पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि इस दिन मां सरस्वती प्रकट हुई थी। इसके साथ ही इसे वसंत ऋतु के आगमन की खुशी में मनाया जाता है। इस दिन मां सरस्वती की विधिवत पूजा की जाती है। इसके साथ ही इस दिन विद्यारंभ संस्कार किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस दिन से शिक्षा आरंभ करने से मां सरस्वती की कृपा से व्यक्ति बुद्धिमान और ज्ञानी बनता है। इसके साथ ही कला के क्षेत्र में भी खूब नाम कमाता है।
सरस्वती वंदना (Saraswati Vandana Lyrics)
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥१॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्॥
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥२॥
कहाँ मनाया जाता है बसंत पंचमी का पर्व?
बसंत पंचमी को बसंत ऋतु की शुरुआत का प्रतीक माना गया है जो ज्ञान एवं शिक्षा की देवी सरस्वती को समर्पित है। इस त्यौहार को देश के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य हिस्सों में धूमधाम एवं श्रद्धाभाव के साथ मनाया जाता है। इस हिन्दू त्यौहार को नेपाल में भी अत्यधिक जोश के साथ मनाते हैं।
बसंत पंचमी की कथा
पुराणों की मान्यता के अनुसार ,एक बार ब्रह्मा जी पृथ्वी पर विचरण कर रहे थे और उन्हें अपनी किसी प्रकार की कमी महसूस हुई इसके बाद उन्होंने तुरंत अपने कमंडल से जल निकालकर पृथवी पर छिड़क दिया। तभी वहां श्वेत वर्ण वाली, हाथों में पुस्तक, माला और वीणा हाथ में लिए हुए देवी प्रकट हुईं। तभी ब्रह्मा जी ने उन्हें सर्वप्रथम वाणी की देवी सरस्वती के नाम से पुकारा। उनका स्वर और वीणा का नाद समस्त प्राणियों को साक्षात्कार और वाणी प्रदान करने के लिए माना जाता है।
