Chandauli News: जिले भर में आयोजित थाना समाधान दिवस एक बार फिर चर्चाओं में है, लेकिन इस बार चर्चा का केंद्र पुलिस विभाग नहीं, बल्कि राजस्व विभाग बन गया है। एक ओर जहां समाधान दिवस का उद्देश्य जनसमस्याओं का त्वरित निस्तारण है, वहीं दूसरी ओर इसमें उमड़ी भीड़ और शिकायतों का स्वरूप कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहा है।
इस बार का थाना समाधान दिवस किसी बड़े आयोजन से कम नहीं था। चंदौली जिले के थानों में फरियादियों की कतारें ऐसी लगीं जैसे किसी मेले में लोग उम्मीदों की दुकान पर आए हों। लेकिन हैरानी की बात यह रही कि कुल 165 शिकायतों में से 152 केवल राजस्व विभाग से संबंधित थीं। पुलिस विभाग के हिस्से आईं मात्र 13 शिकायतें। आंकड़े साफ इशारा करते हैं कि जनता की समस्याएं किस विभाग की ओर ज्यादा झुकी हुई हैं।
राजस्व विभाग बना सवालों के घेरे में
भले ही समाधान दिवस का मंच पुलिस थानों में सजा हो, लेकिन जनता की नजर में सबसे बड़ी जिम्मेदारी इस बार राजस्व विभाग की बनती दिखी। 92 प्रतिशत शिकायतें इसी विभाग से जुड़ी हुई थीं। कहीं भूमि विवाद, तो कहीं दाखिल-खारिज की फाइलें अटकी हुई थीं। फरियादी महीनों से एक ही समस्या को लेकर चक्कर काटते हुए अब समाधान दिवस को ही एक आखिरी उम्मीद के रूप में देख रहे हैं।
सिर्फ आयोजन या वाकई समाधान?
प्रशासन समाधान दिवस, जन चौपाल और सम्पूर्ण समाधान दिवस जैसे आयोजन तो कर रहा है, लेकिन अगर शिकायतों की संख्या घटने के बजाय बढ़ रही है, तो यह एक गंभीर संकेत है। समाधान की जगह यदि लोग सिर्फ “फॉर्म भरवाने” की प्रक्रिया से गुजरते हैं, तो इसका उद्देश्य ही प्रश्नचिन्ह के घेरे में आ जाता है।
फरियादी एक उम्मीद के साथ आते हैं कि उनकी सुनवाई होगी, न्याय मिलेगा। लेकिन जब बार-बार केवल तारीखें ही मिलें, तो वो इस दिवस को “शिकायत पुनरावृत्ति दिवस” ही समझने लगते हैं।
“समाधान दिवस है या बहलाव दिवस?”
यह सवाल अब आम हो चला है। हर फरियादी की आंखों में उम्मीद होती है, लेकिन जब शिकायतों की सुनवाई महीनों तक केवल “प्रक्रिया में है” की पंक्ति में अटकी रहती है, तो लोगों का विश्वास कमजोर पड़ने लगता है। इस परिस्थिति में थाना समाधान दिवस अपनी मूल भावना से भटकता हुआ केवल एक औपचारिकता बनकर रह जाता है।

Author: Shivam Verma
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