Sonbhadra News: खनन और पर्यावरण से जुड़े मामलों में एक बार फिर सोनभद्र जिला सुर्खियों में है। इस बार मामला स्टोन क्रशर प्लांटों की स्थापना और उनसे जुड़ी एनओसी (सहमति आदेश) को लेकर है, जिसमें गंभीर गड़बड़ियों और तथ्यों को छिपाकर मंज़ूरी देने की बात सामने आई है। वर्ष 2000 में लगाए गए स्पष्ट प्रतिबंध के बावजूद, कुछ अधिकारियों द्वारा नियमों की अनदेखी करते हुए एनओसी जारी किए जाने से न सिर्फ शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे हैं, बल्कि अब फिर से इस पूरे मामले में हलचल तेज हो गई है।
क्रशर प्लांटों की बहाली की कवायद से मामला फिर गरमाया
बिल्ली-मारकुंडी क्षेत्र में दो पत्थर खदानों को वर्ष 2021 से जिलाधिकारी और उपजिलाधिकारी स्तर से अवैध घोषित किया गया था। बावजूद इसके, इन्हें बाद में वैध ठहराने का प्रयास हुआ। अब वर्ष 2000 से लगे प्रतिबंध के बावजूद तथ्यों को छिपाकर क्रशर प्लांट की एनओसी जारी करने के मामले ने फिर जोर पकड़ लिया है। चर्चाएं हैं कि एक बार फिर से उस विवादित एनओसी को बहाल किए जाने की तैयारी हो रही है, जिससे यह मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है।
डीएम ने की थी सख्त कार्रवाई की संस्तुति
यह पूरा मामला वर्ष 2023 में उस समय गंभीर रूप में सामने आया जब तत्कालीन जिलाधिकारी चंद्र विजय सिंह को सिंदुरिया में एक फर्म द्वारा बिल्ली-मारकुंडी क्षेत्र में क्रशर प्लांट स्थापित किए जाने की जानकारी मिली। आरोप था कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने तथ्यों को छिपाते हुए सहमति (जल एवं वायु) आदेश जारी कर दिया। डीएम ने तुरंत एडीएम (नमामि गंगे) को जांच का जिम्मा सौंपा।
जांच में सामने आया कि 4 जुलाई 2022 को वैज्ञानिक सहायक द्वारा जानबूझ कर तथ्यों को छिपाया गया। इसके पहले के दस्तावेजों और निरीक्षण आख्या की अनदेखी करते हुए क्षेत्रीय अधिकारी ने रिपोर्ट को मंजूरी दी और 6 जुलाई 2022 को संबंधित फर्म ‘राजीव ग्रामोद्योग’ को एनओसी जारी कर दी गई।
एनजीटी के आदेशों की भी हुई अनदेखी
डीएम द्वारा पर्यावरण मंत्रालय को भेजे गए पत्र में स्पष्ट रूप से बताया गया कि जांच रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि एनजीटी (राष्ट्रीय हरित अधिकरण) के 28 अगस्त 2018 के आदेश और ओवर साइट कमेटी के निर्देशों को भी दरकिनार किया गया। इस लापरवाही को उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमावली, 1999 का उल्लंघन माना गया और इससे न सिर्फ यूपीपीसीबी की साख पर असर पड़ा बल्कि जिला प्रशासन की छवि को भी नुकसान पहुंचा।
विभागीय कार्रवाई पर अब भी संशय बरकरार
6 सितंबर 2023 को डीएम ने क्षेत्रीय अधिकारी और वैज्ञानिक सहायक को जिम्मेदार ठहराते हुए विभागीय कार्रवाई की संस्तुति की। इसके बाद 4 दिसंबर को फिर पत्र भेजकर वैज्ञानिक सहायक को निलंबित करते हुए अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की गई। इसके बाद संबंधित अधिकारियों को स्थानांतरित भी किया गया। वैज्ञानिक सहायक केके मौर्या को मुख्यालय से अटैच कर दिया गया और क्षेत्रीय अधिकारी टीएन सिंह का स्थानांतरण कर दिया गया।
हालांकि, वर्ष 2024 में डीएम के स्थानांतरण के साथ ही यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। अब फिर से जब एनओसी बहाल करने की चर्चा शुरू हुई है, तो यह सवाल उठ रहा है कि उस समय की गई विभागीय कार्रवाई की मौजूदा स्थिति क्या है।
अधिकारियों ने क्या कहा?
जब इस प्रकरण पर यूपीपीसीबी के सदस्य सचिव संजीव सिंह से जानकारी लेनी चाही गई, तो वे व्यस्त मिले। वहीं क्षेत्रीय अधिकारी आरके सिंह ने कहा कि पूर्व में वे आवश्यक कार्रवाई कर चुके हैं। एनओसी बहाल किए जाने को लेकर उन्होंने अनभिज्ञता जताई, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि अगर भविष्य में कोई प्रस्ताव आता है तो वह नियमानुसार ही कार्रवाई करेंगे।
क्या कहता है शासन का निर्देश?
उल्लेखनीय है कि 25 जुलाई 2000 को शासन की ओर से स्पष्ट निर्देश जारी किए गए थे, जिसमें सोनभद्र-सिंगरौली क्षेत्र में नए स्टोन क्रशर प्लांटों की स्थापना व संचालन पर प्रतिबंध लगाया गया था। बावजूद इसके, संबंधित अधिकारियों ने इन निर्देशों को नजरअंदाज कर कार्यवाही की, जो अब कई सवाल खड़े कर रही है।

Author: Shivam Verma
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